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The Sabarmati Report : फिल्म में दिखी हिंदी पत्रकारों की संघर्षभरी कहानी, न न्यूजरूम में मिलता है सम्मान न अच्छा वेतन

विक्रांत की फिल्म पत्रकारिता के पीछे की सच्चाई को दर्शाती है. साथ ही, हिंदी पत्रकारों को उनके संघर्षों में अकेला छोड़ देने की आलोचना करती है, और साथ ही यह सवाल उठाती है कि क्यों हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं के पत्रकारों को उसी सम्मान और वेतन से वंचित रखा जाता है जो अंग्रेजी पत्रकारों को मिलता है. इस फिल्म के माध्यम से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि मीडिया की वास्तविकता क्या है और पत्रकारिता के प्रति समाज की मानसिकता में बदलाव की जरूरत है.

फिल्म में विक्रांत मैसी के साथ अभिनेत्री राशि खन्ना व रिद्धि डोगरा.
The Sabarmati Report : विक्रांत मैसी की फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ 15 नवंबर 2024 को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई. फिल्म में विक्रांत मैसी के अलावा राशि खन्ना (Rashi Khanna) और रिद्धि डोगरा (Ridhi Dogra) हैं. धीरज सरना (Dheeraj Sarna ) के निर्देशन में फिल्म ने करीब 40 करोड़ रुपये का कलेक्शन कर लिया है. कई राज्यों में इस फिल्म को टैक्स फ्री भी कर दिया गया. शोभा कपूर, एकता कपूर, अमूल वी मोहन और अंशुल मोहन ने इसे प्रोड्यूस किया है. फिल्म की कहानी गुजरात के गोधरा में साल 2002 में हुए अग्निकांड और उसके बाद के गुजरात दंगों पर आधारित है. फिल्म का ट्रेलर आने के बाद से ही फिल्म विवादों चली गई. मुख्य किरदार अभिनेता विक्रांत को धमकियां तक मिली हैं. सात ही, फिल्म रिलीज होने के साथ ही गूगल पर गोधरा कांड से जुड़ी सर्च बढ़ गई थी. जानिए इस रिपोर्ट में कि गोधरा कांड क्या है,कब हुआ था और उसके बाद क्या-क्या हुआ. साथ ही, फिल्म में हिंदी पत्रकारों की संघर्षभरी कहानी को कैसे बयां किया गया है.

फिल्म ने उठाया हिंदी पत्रकारिता का बड़ा मुद्दा
फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ ने हिंदी पत्रकारों (Hindi Journalist) की संघर्षभरी दास्तान को पर्दे पर पेश किया है, जो अपनी भाषा और समर्पण के बावजूद न्यूजरूम में सम्मान और उचित वेतन से वंचित रहते हैं. फिल्म गोधरा ट्रेन-अग्नि घटना के संदर्भ में बताती है कि कैसे हिंदी पत्रकार समर कुमार (विक्रांत मैसी द्वारा अभिनीत) को अपने पेशेवर जीवन में उपेक्षा और अपमान का सामना करना पड़ता है. निर्देशक ने फिल्म में हिंदी पत्रकारिता और अंग्रेजी मीडिया के बीच की खाई को उजागर किया है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या यह सिर्फ एक औपनिवेशिक मानसिकता का परिणाम है.


हिंदी पत्रकारों की
वास्तविकता: फिल्म का कच्चा सच
फिल्म में समर को अपने अंग्रेजी बोलने में कमी के कारण अवहेलना का शिकार होते हुए दिखाया गया है, जो हिंदी मीडिया के प्रति समाज का छुपा हुआ पूर्वाग्रह और असम्मान को उजागर करता है. विशेषकर उसकी प्रेमिका श्लोका का संवाद ‘तुम्हें पता है कि वैसे भी हिंदी पत्रकारों की उम्मीद नहीं की जाती’ दर्शाता है कि हिंदी पत्रकारिता को लेकर समाज में एक गहरी नकारात्मक धारणा है.

न्यूज रूम में भेदभाव: क्या यह राजनीतिक पूर्वाग्रह का परिणाम है?
फिल्म ​केवल हिंदी पत्रकारों के संघर्ष को नहीं दिखाती, बल्कि यह मीडिया (Media) और कॉर्पोरेट (Coorporate) जगत के नापाक रिश्तों को भी उजागर करती है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे न्यूज चैनल (News Channel) और बड़े व्यापारी घरानों के बीच गठजोड़ होते हैं, जिससे पत्रकारों को अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता से समझौता करना पड़ता है. फिल्म के पात्र समर और मनिका के बीच के संवाद और रिश्ते भी इस बेमेल व्यवस्था को दिखाते हैं, जहां समर को अपने पेशेवर विश्वास और जिद की वजह से गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं
साबरमती रिपोर्ट: पत्रकारिता की सच्चाई और राजनीति का खेल
फिल्म में पत्रकारिता के साथ-साथ राजनीति के खेल को भी बारीकी से पेश किया गया है, जहां समर की खोज सच्चाई की राह पर उन्हें सत्ता और मीडिया के गठजोड़ के खिलाफ खड़ा कर देती है. फिल्म में यह स्पष्ट किया गया है कि पत्रकारिता (Journalism) की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए पत्रकारों को न केवल पेशेवर संघर्ष करना पड़ता है, बल्कि उन्हें व्यक्तिगत और राजनीतिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है.
आपने फिल्म के बारे में जानकारी ली. अब आप यह रिपोर्ट के जरिए गोधरा कांड की पूरी योजना व फैसले के बारे में..
2002 का एक काला अध्याय
साल 2002 का फरवरी माह व गुजरात का (Godhra Railway Station) गोधरा रेलवे स्टेशन. साबरमती एक्सप्रेस (Sabarmati Express) के एक डिब्बे में आग लग जाती है, जिसमें अयोध्या (Ayodhya) से लौट रहे कारसेवक सवार थे. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. गोधरा कांड के नाम से मशहूर इस घटना ने गुजरात में सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया, जिसने राज्य को आग में झोंक दिया.

क्या हुआ था गोधरा में?
27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लग गई. इस घटना में 59 लोगों की मौत हो गई. आरोप लगाया गया कि इस आग को जानबूझकर लगाया गया था. इस घटना के बाद पूरे गुजरात (Gujrat) में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे.

दंगे और उनके परिणाम
गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों बेघर हो गए. दंगों के दौरान व्यापक पैमाने पर संपत्ति को नुकसान पहुंचा. इन दंगों ने गुजरात के सामाजिक ताने-बाने को गहरा धक्का पहुंचाया.

राजनीतिक उथल-पुथल
गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों ने भारतीय राजनीति में एक बड़ा तूफान खड़ा कर दिया. इस घटना के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को जिम्मेदार ठहराया गया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बाद में उन्हें इस मामले में बरी कर दिया.

नानावटी-मेहता आयोग
गोधरा कांड की जांच के लिए नानावटी-मेहता आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस घटना को एक साजिश करार दिया. आयोग ने कहा कि गोधरा कांड के पीछे कुछ लोग थे जिन्होंने जानबूझकर इस घटना को अंजाम दिया था.

कानूनी कार्रवाई
गोधरा कांड के मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया. हालांकि, इस मामले में कई सालों तक सुनवाई चलती रही और कई बार फैसले बदले गए.

सवाल अभी भी बने हुए हैं
आज भी गोधरा कांड के बारे में कई सवाल अनुत्तरित हैं. क्या यह घटना एक दुर्घटना थी या एक साजिश? क्या सरकार ने दंगों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाए? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

निष्कर्ष
गोधरा कांड भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है. इस घटना ने देश को गहरा आघात पहुंचाया. गोधरा कांड से हमें यह सबक मिलता है कि सांप्रदायिकता एक बहुत बड़ा खतरा है और हमें इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करना चाहिए.
- गोधरा कांड के बाद भारत में सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए कई प्रयास किए गए हैं.
- इस घटना ने भारतीय समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है.
- गोधरा कांड एक जटिल घटना है जिसके कई पहलू हैं.

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