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आचार्य किशोर कुणाल ने महावीर मंदिर को दी नयी पहचान...

पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर देश के प्रमुख हनुमान मंदिरों में से एक है. यह एक मनोकामना मन्दिर है, जहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है और यह मन्दिर में भक्तों की बढ़ती संख्या का कारण है. इस प्राचीन मंदिर की स्थापना सन् 1730 में स्वामी बालानंद जी महाराज के द्वारा की गयी थी. वर्ष 1900 तक यह मंदिर रामानंद संप्रदाय के अधीन था. उसके बाद इस पर 1984 तक गोसाई संन्यासियों का कब्जा रहा. वर्ष 1984 में पटना हाई कोर्ट ने इसे सार्वजनिक मंदिर घोषित किया.
1983 में महावीर मंदिर के जीर्णोद्वार कार्य का किया था शुभारंभ
महावीर मंदिर विकास समिति के कोषाध्यक्ष और उनके मित्र प्रदीप जैन ने बताया कि जब आचार्य कुणाल पटना में एसपी के रूप में कार्यरत थे तब वे अक्सर महावीर मंदिर में दर्शन के लिए आते थे. इस क्रम में उन्होंने देखा कि पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर में हर महीने लाखों रुपये श्रद्धालुओं से आते हैं, लेकिन न तो वहां भक्तों के लिए कोई सुविधा है और मंदिर की हालात भी दिनोंदिन जर्जर होती जा रही है. इसे लेकर एक बैठक की. बैठक में वरीय अधिवक्ता सुदी बाबू, देवेंद्र बाबू और एमके सिन्हा शामिल हुए. जिसमें मंदिर को ठीक-ठाक करने पर मंथन हुआ. इसके बाद 30 अक्तूबर 1983 को उन्होंने महावीर मंदिर के जीर्णोद्वार कार्य का शुभारंभ किया. इस कार्य में उन्हें समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों का सहयोग मिला. कुछ लोगों ने आर्थिक सहयोग किया तो कुछ लोगों ने श्रमदान किया. कार सेवकों में अजीब सा उत्साह देखने को मिला.
महावीर मंदिर में दलित पुजारी की हुई थी नियुक्ति
वहीं, रमेश चंद्र तलरेजा ने बताया कि आचार्य किशोर कुणाल के अथक प्रयास से वर्ष 1983 से 1985 के बीच वर्तमान मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था. मंदिर बनकर तैयार हुआ तो राजधानी पटना को एक नयी पहचान मिली. चार मार्च 1985 को मंदिर आम लोगों को समर्पित किया गया था. मंदिर निर्माण में शहर के लोगों ने ही नहीं दूसरे जिले के लोग अपनी कार सेवा से सहयोग किया था. क्या बुढ़े क्या जवान क्या महिलाएं हर लोग अपने सेवा देने के लिए घंटों जुटे रहते थे. वह दृश्य आज जेहन में एक बार फिर उभर आया है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में जहां विग्रह विराजमान है, ठीक उसके नीचे भूमि पर मूल भगवान महावीर का विग्रह था. कुणाल ने दलितोत्थान की दिशा में एक और ऐतिहासिक कार्य किया, जब उन्होंने 13 जून 1993 को महावीर मंदिर में एक दलित पुजारी की नियुक्ति की. यह भी पढ़ेंः पटना के इस लेखक की प्रतिभा कर देगी आपको प्रेरित, तीसरी बार मिल चुका है राहुल सांकृत्यायन पर्यटन पुरस्कार, लिख चुके हैं चार किताबें
31 मई, 2001 को भारतीय पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त होकर किशोर कुणाल दिन-रात श्री हनुमानजी की सेवा एवं आराधना में लीन रहने लग गये. श्री हनुमानजी एवं प्रभु श्रीराम की सेवा एवं आराधना करना ही इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह गया था.

(लेखकः सुबोध कुमार नंदन)

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