भारत में कई तरह के छात्र संगठन की स्थापना हो गई
है. परंतु, कहा जाता है कि छात्र हितों के लिए काम करने
में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सबसे अव्वल रही है. दरअसल, अभाविप का मकसद है ‘मजबूत राष्ट्र के निर्माण और अपनी संस्कृति को बचाए और
बनाए रखना’. खबर के मुताबिक, विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले
युवाओं की समुचित भागीदारी के लिए 9 जुलाई 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की गई. लेकिन आपको लग रहा
होगा कि आज अभाविप यानी ABVP की चर्चा क्यों हो रही है?
बता दें, अखिल भारतीय
विद्यार्थी परिषद डीएसपीएमयू इकाई ने कुलपति श्री तपन कुमार शांडिल्य को एक 5 सूत्रीय ज्ञापन सौंपा. जिसमें छात्र संघ ने विभिन्न मुद्दों पर अपनी
मांगे रखी. बताया जा रहा है कि प्लेसमेंट, शौचालय, स्पोर्ट्स के लिए लगातार कार्यक्रम का आयोजन, पुस्तकालय,
लैब सहित एडमिशन शुल्क बढ़ोतरी जैसी मांगें शामिल थी. वहीं, विश्वविद्यालय में शौचालय की व्यवस्था सुगम नहीं है. कई विभाग के शौचालय के दरवाजे पर ताले भी जड़ दिए गए हैं.
हालांकि, ज्ञापन देखने के बाद इन सभी सुविधाओं को जल्द से जल्द मुहैया कराने का डॉ०
श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय ने आश्वाशन दिया.
साथ ही प्लेसमेंट सेल को शीर्ष में रखते हुए छात्र
संघ के कार्यकर्ताओं ने कुलपति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. छात्र संघ के
सदस्यों का कहना था कि राजधानी रांची के अन्य कॉलेज जैसे संत ज़ेवियर कॉलेज , मारवाड़ी कॉलेज में प्लेसमेंट सेल के माध्यम से भारत की बड़ी-बड़ी कंपनियों
में विद्यार्थियों को अच्छी पैकेज की
नौकरी प्रदान की जाती है. वहीं, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
विश्वविद्यालय की बात करें तो प्लेसमेंट सेल के मामले में काफी पीछे है. यहां से
किसी भी छात्रों के लिए कोई प्लेसमेंट सेल
की सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई जाती है. जिससे छात्रों को नौकरी ढूँढने में अत्यंत
परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन अहम मुद्दों पर वार्ता के बावजूद ABVP
ने हर विभाग के एक गरीब छात्र को पुअर स्टूडेंट फंड के माध्यम से पढ़ाने का सुझाव भी दिया.
विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय ने अभाविप के सभी मांगों
को वेद मानते हुए यह आश्वासन दिया कि छठ पूजा की छुट्टी के बाद से विश्वविद्यालय
में इन तमाम परेशानियों का समाधान किया जाएगा.
(इनपुट: सूरज श्रीवास्तव
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