मौके पर ग्रामीणों ने स्वीकार
किया कि जब तक आदिवासी गांवों में एकजुट नहीं होंगे, तब तक उनके साथ अन्याय, अत्याचार, शोषण
जारी रहेगा। उन्होंने नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, वोट की खरीद बिक्री आदि को रोकने की गरिमाई जरूरत बताई। वे
आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में वंशानुगत नियुक्त माझी-परगना की जगह जनतांत्रिक
तरीके से नियुक्ति करने की भी मांग रखे।
सेंगेल सभा को संबोधित करते हुए पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि, 1932 की
खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाने का झुनझुना झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी, लोबिन हेंब्रम, छात्र नेता और जयराम महतो आदि जनता को दिग्भ्रमित कर अगले
चुनाव के लिए चालू रखे हैं। इससे पहले झारखंड हाईकोर्ट ने 27 नवंबर 2002 को खारिज
कर दिया था। उन्होंने कहा कि 1932 खतियान वालों को पहले माननीय सुप्रीम कोर्ट जाकर
इसे पुनर्बहाल कराना होगा। अन्यथा यह झारखंड के आदिवासी मूलवासियों को ठगने का एक
महापाप होगा।
Manipur Violence: स्वर्णरेखा परियोजना से विस्थापित लोगों की बस्ती चिलगु में
सेंगेल सभा का आयोजन किया गया। इस सभा की अध्यक्षता चांडिल प्रखंड सेंगेल परगना
देवनाथ हेंब्रम ने की। सभा में पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के अलावे आदिवासी सेंगेल
अभियान के केंद्रीय नेता सोनाराम सोरेन व बिमो मुर्मू भी शामिल थे। इस सभा में चांडिल प्रखंड के
सेंगेल अध्यक्ष सोनातन किस्कु, उपाध्यक्ष
लुसकु हांसदा और शम्भूनाथ मार्डी, महासचिव
रत्न मार्डी, सचिव मिथुन मुर्मू
नियुक्त किए गए। साथ ही, मणिपुर हिंसा और आदिवासी महिलाओं को नंगा घुमाने के खिलाफ
तिलका मुर्मू चौक में मणिपुर सरकार का पुतला दहन किया गया।
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