किसानों की वेशभूषा में दिख जाते थे
टाइगर
टाइगर जगरनाथ महतो (Jagarnath
Mahato) की अंतिम विदाई में उमड़े जलसैलाब ने ये बता दिया था कि वे
जननेता यूं ही नहीं बने थे. इसके पीछे त्याग और तपस्या की सैकड़ों सुनी-अनसुनी
कहानियां थीं और वे कार्य थे जिसने जगरनाथ महतो के जनस्पर्षी व्यक्तित्व को रचा था.
जगरनाथ महतो लोगों के हक और हकूक के लिए लड़ना भिड़ना जानते थे तो किसी महात्मा की
तरह विनम्रता भी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थी. मंत्री रहते वे अपने गांव के खेतों
में किसानों की वेशभूषा में दिख जाते थे, उनमें कोई आडंबर
नहीं था.
कार्यकर्ता से मंत्री बनने तक थामा झामुमो का दामन
झामुमो में वर्ष 1980 में एक कार्यकर्ता के रूप में शामिल होने के बाद से वे मंत्री बनने तक भी
उसी रूप में रहे. गांव के खलिहान में बैठना और बूढ़े-बुजुर्गों के साथ उनकी भाषा
में बोलने-बतियाने के अपने हुनर और गंवईपन को उन्होंने अंत तक बरकरार रखा. पारा
शिक्षकों को जिस तरह उन्होंने उनका हक दिलाया यह झारखंड के इतिहास में मील का
पत्थर कहा जायेगा.
अपने कार्यों से देते थे विपक्ष को
करारा जवाब
टाइगर हमेशा सच्चाई के साथ खड़े रहते थे और उनकी प्राथमिकता हमेशा खुद से पहले उस
जन को सुखी बनाने की थी जिसकी वो रहनुमाई करते थे और जिनके दम पर वे लगातार झारखंड
की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे थे. झारखंड का शिक्षा मंत्री बनने के बाद उनकी
शिक्षा को लेकर जो बातें कहीं गयी उसका अपने कार्यों से उन्होंने करारा जवाब दिया.
उन्होंने यह साबित कर दिया कि नीयत और नीति ठीक हो तो फिर काम करने के लिए
लंबी-चौड़ी डिग्रियां मायने नहीं रखतीं.
इस कॉलेज में लिया था अपना एडमिशन
अपनी शिक्षा बढ़ाने को उन्होंने चुनौती के रूप में लिया और इंटर की पढ़ाई के लिए
उसी संस्थान में उन्होंने एडमिशन लिया जिसकी नींव उन्होंने रखी थी. जगरनाथ महतो (Jagarnath Mahato) जनता के लिए
जीते थे और यही वजह थी कि कोरोना लहर में भी उन्होंने जनता के लिए काम करना नहीं
छोड़ा. हालांकि इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और कोरोना काल में उनके लंग्स
संक्रमित हो गये. वे थे तो जगरनाथ पर उन्होंने शिव की तरह कोरोना का कालकूट विष
पिया. लंग्स ट्रांसप्लांट के बाद जब उन्हें आराम और स्वच्छ वातावरण की जरूरत थी
उन्होंने अपने स्वास्थ्य से ज्यादा जनहित को प्राथमिकता दी और इसी के लिए अपना
सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. जगरनाथ महतो (Jagarnath Mahato)
अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन झारखंड की राजनीति में उनका व्यक्तित्व अमर है,
अमरता हासिल कर चुका है.
Jagarnath
Mahato Passed Away:
निधन के बाद बीते शुक्रवार को भंडारीदह में दामोदर के तट पर जलती
चिता की लपटें बोल रही थीं. वो कह रही थीं कि आग की लपटों में विलीन होनेवाले
टाइगर का व्यक्तित्व उससे भी ऊंचा था जितना उनकी चिता से निकलकर आसमान छू रहा धुआं.
उनकी अंतिम विदाई में उमड़ा जन सैलाब बता रहा था कि झारखंड की जनता के दिलों में
बसते थे. वे सबके साथ थे और सब उनके साथ. उन्हें सबकी परवाह थी और सब उन्हें चाहते
थे. वे सबके सुख:दुख में साझीदार, अन्याय के खिलाफ लड़ाई में
झंडाबरदार, झगड़े-फसाद खत्म करानेवाले, बीमारी और आपदा-विपदा में खड़े होनेवाले मददगार और मानवता के रहनुमा थे.
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