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दफ़्तर में ऐसे बनाते हैं स्वस्थ माहौल; इस वजह से हैं SJMC के हनुमान सबके चहेते, आइए जानते हैं इसका रहस्य!


नौकरी एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही आपके मन एवं भावनाओं में गहरी दरार पैदा करता है. ऐसा कहा जाता है कि नौकरी करने वाले लोगों की लाइफस्टाइल काफी तनावपूर्ण होती है. दरअसल, इस दौरान काम का इतना प्रेशर होता है कि वह अपनी निजी जीवन में भी डिस्टर्ब हो जाते हैं और खुशी महसूस नहीं करते हैं. नौकरी में काम के दबाव की वजह से व्यक्ति कार्य क्षेत्र में आगे बने रहने के चलते खुद पर अतिरिक्त दबाव डालते हुए नॉर्मल होना भूल जाते हैं. इस वजह से कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों से भी घिर जाना होता है. लेकिन अगर आप इसे सच मानते हैं तो एक बार रांची स्थित डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग चले आइए. इस विभाग के कार्यालय में आपकी मुलाक़ात मो० रमीज़ जी से होगी. ये केवल पूरे विभाग के सभी जिम्मेदारियों को नहीं संभालते बल्कि  खुशी-खुशी हर चीज को आसानी से बैलेंस भी रखते हैं. दफ्तर में भी होते हुए उनकी जिंदगी खुशनुमा होती है. 


बता दें
, मो० रमीज़ जी का मानना है कि किसी भी काम को पूरी जिम्मेवारियों के साथ ख़ुशी पूर्वक करने से ही सफलता मिलती है. लेकिन उस कार्य के बदले पूरी टीम को आभार या धन्यवाद ज्ञापित करना उस संस्थान में खुशनुमा माहौल बना देता है. दरअसल, संबंधों की प्रगाढ़ता को यही धन्यवाद चार चांद लगा देता है. साथ ही छात्र-छात्राओं की मदद करने से हमेशा मुझे प्रसन्नता महसूस होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर  विद्यार्थी दूर-दराज से ही इस अनजान शहर में पढ़ने आते हैं. ऐसे में उनकी सहायता करना बेहद जरूरी होता है. लिहाजा मैं जितना धन्यवाद कमाता हूं वही मेरी असली कमाई है. यह सीधे-सीधे तत्काल किसी की मदद और किसी की किसी भी परिस्थिति में मदद से जुड़ा है. यहां कोई दूसरे के लिए कुछ ऐसा कर रहा कि सामने वाले का मन उसके लिए एक अलग प्रकार की श्रधा से भर रहा है. यह श्रधा किसी के विश्वास को भी मजबूत करती है.

अगर एक अध्ययन की मानें तो धन्यवाद देने का भाव जिन लोगों में प्रबल होता है उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा व चारित्रिक गुण अधिक होते हैं. ऐसे लोगों में गुणात्मक विकास बहुत ज्यादा होता है. धन्यवाद भी संक्रामक की श्रेणी में आता है. यदि कोई किसी को धन्यवाद ज्ञापित कर रहा है तो सच मानिए तीसरा व्यक्ति भी इसके लिए स्वतः प्रेरित होता है. वास्तव में देखा जाए तो एक छोटा-सा शब्द हमारे मन पर सकारात्मक गहरी छाप छोड़ता है. इसलिए आवश्यक है कि हमारे हिस्से में भी बहुत सारे धन्यवाद आएं और हम भी बहुत सारे धन्यवाद कर सकें. धन्यवाद पाना और देना दोनों ही हमारे सच्चे बैंक बैलेंस हैं जो हमारे साथ जाने वाले हैं. 
तो आइये जानते हैं विस्तार से- 

“यूनिवर्सिटी ज्वाइन करने के बाद सर्वप्रथम क्लास को लेकर रमीज़ जी का कॉल आया था. उस दौरान कोरोना की वजह से कक्षाएं ऑनलाइन चल रही थी. दरअसल
, वह मुझे बता रहे थे कि आपको इतने बजे गूगल मीट के माध्यम से क्लास लेनी है. लेकिन मैंने उससे पहले ऑफलाइन क्लास ही ली थी इस वजह से मेरे पास कोई आईडिया नहीं था. तब उन्होंने मुझे बहुत ही  सरल तरीके से समझा दिया तो बहुत आसान हो गया था. साथ ही डिपार्टमेंट के लिए समय देना,  निष्ठापूर्वक काम करना और हमेशा हंसते हुए सभी के बीच सामान्य तरीके से पेश आना. वह खुद भी  इसी विश्वविद्यालय के छात्र हैं फिर भी सभी का आदर करना ये सब उनके लिए चिह्नित करने योग्य बातें हैं. अगर एक वाक्य में उनके लिए कहें तो रमीज़ जी एसजेएमसी के हनुमान हैं. जैसे हनुमान जी को संकट मोचन कहते हैं ना ठीक उसी प्रकार  एसजेएमसी के सभी संकट को रमीज़ जी हर लेते हैं चाहे वो क्लास की परेशानी हो या विद्यार्थियों से जुड़ी हो या फैकल्टी मेंबर्स से जुड़ी, सभी परिस्थितियों को अकेले संभाल लेते हैं. He is the one man army for department”.

  - Nainy Mishra, Guest Faculty, SJMC, DSPMU


रमीज़ भैया एक ऐसे किरदार हैं इस विभाग के लिए.. दरअसल, एक संस्थान को स्वस्थ माहौल में चलाने के लिए कई सारे चीज़ होते हैं. ठीक उसी प्रकार एसजेएमसी को चलाने में कुछ गिने-चुने लोग हैं जिनकी खास भूमिका है. इसमें सबसे बड़ा किरदार देखा जाए तो वह रमीज़ भैया का है. उन्होंने इस विभाग के लिए शुरूआती दौर से ही धरातल पर रहकर हर काम को संभालते आ रहे हैं. उनके पास एक स्मार्टफोन है जिसमें इतने सारे स्टूडेंट का विवरण भरा हुआ है जो कि ख़राब होने की स्थिति में है लेकिन उस फोन में सभी के रिकॉर्ड रखना और कोरोना के समय क्लासेज कंडक्ट करवाना हर पांच मिनट में अलग-अलग लिंक जेनेरेट कर सभी छात्रों को ज्वाइन करवाना. इतने सारे काम के साथ-साथ दफ्तर के काम को भी संभालना. इसके उपरान्त विश्वविद्यालय का जो व्यवहार है उनके वेतन को लेकर वह बिल्कुल भी ठीक नहीं है. उनके जीवन में कई अड़चनें आई इसके बावजूद कई महीनों का वेतन अब तक मिला भी नहीं और कई तामाम चीजें हैं. फिर भी प्रतिदिन विभाग में सबसे पहले पहुंचना यह सब बिल्कुल भी आसान नहीं है. सभी छात्रों से लेकर शिक्षकगण से रूबरू होना. किसी भी कार्यक्रम को पूरी करने से पहले तैयारी कर संपन्न करवाना. छात्र से लेकर निर्देशक सर तक हर एक जानकारी साझा करना. मेरी मानें तो हम जैसे छात्रों के लिए रमीज़ भैया का काम बेहद सराहनीय है. इनके व्यक्तित्व की बात पर एक किताब लिखा जा सकता है”.

  - Ramanand Kumar, Ex BJMC Student, SJMC, DSPMU

“अगर हम अपनी बात करें तो मेरा मदद तो नामांकन के समय से ही रमीज़ सर ने की है. हालांकि, उन्हें हम सर नहीं बल्कि भैया कहकर पुकारते हैं. रमीज़ भैया हमारे हर तरह के परेशानियों को दूर करते हैं चाहे वह पढ़ाई से जुड़ी हो या बाहरी एक बार उनसे बात तो कर लो सभी परेशानी को दूर करने में सक्षम हैं. हम सभी के लिए वह 24x7 घटें उपलब्ध रहते हैं”. 

- Vikram Kashyap, Student, BJMC SEM-IV, SJMC, DSPMU


..इस विडियो के माध्यम से देखें रमीज़ भैया की लोकप्रियता और उनकी उदारता




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