दरअसल, इस वर्ग
का उद्देश्य है कि जो प्रशिक्षु यहां से संस्कृत भाषा का ज्ञान लिए वे अपने-अपने
क्षेत्र में भी लोगों को संस्कृत का ज्ञान देंगे. साथ ही श्लोक उच्चारण केंद्र,
सरला केंद्र व बाल केंद्र भी चलाए जाएंगे. संस्कृत भारती के प्रांतीय मंत्री
दीपचंद राम कश्यप ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत की आत्मा है. इसका ज्ञान होना बेहद
जरूरी है. वहीं, प्रशिक्षण
प्रमुख डॉ चंद्रमाधव सिंह ने बताया कि संस्कृत भारती 1995 से लगातार राज्य में
संस्कृत भाषा सिखाने का कार्य कर रही है. प्रबोधन वर्ग में सर्वेश कुमार मिश्र,
डॉ अजीत नारायण पांडेय, डॉ पारंगत खलखो,
प्रवीण कुमार व अन्य प्रशिक्षण दे रहे थे.
हालांकि, इस प्रबोधन
वर्ग को भव्य तरीके से राणी सती मंदिर के प्रांगण में संपन्न कराया गया. इसके
मुख्य अतिथि भारत सरकार के पूर्व राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार एवं अध्यक्ष के रूप
में विनोबा भावे विश्वविद्यालय के संस्कृत
विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तारा कांत शुक्ला जी उपस्थित हुए. कार्यक्रम
में मुख्य अतिथि पोद्दार ने कहा कि बदलते हुए भारत में संस्कृत की महती भूमिका है.
संस्कृत भाषा को लेकर पूरे भारत में भाषा संबंधी कोई विवाद नहीं है. संस्कृत
ग्रंथों को आधार बनाकर नासा भी खोज कर रहा है. मौके पर डॉ शुक्ला ने भी कहा कि
संस्कृत भाषा को जानने वाले किसी भी भाषा को शीघ्रता से जान सकते हैं. संस्कृत में
वैज्ञानिक चिंतन निहित है.
गौरतलब है कि इस
संस्कृत प्रबोधन वर्ग का समापन के वक्त संस्कृत भाषा में ही कई सांस्कृतिक
कार्यक्रम प्रस्तुत की गई. जिसमें सबसे अधिक लुभावनी प्रस्तुति दहेज़ प्रथा को लेकर
रही. इसकी सहायता से दहेज प्रथा की वजह से कुंठित हो रहा हमारा समाज से लोग रूबरू
हो सके. वहीं, बच्चों में सुबह उठने की प्रवृत्ति और माता-पिता के साथ अच्छी संवाद
भी संभाषण में झलक रहा था.
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