जुलाई से दिसंबर तक मिलता है रोजगार
पानीफल की खेती से धनबाद में प्रत्यक्ष और परोक्ष
रूप से करीब 2.5 हजार परिवार जुड़े हैं. इससे उन्हें जून-जुलाई से दिसंबर तक
रोजगार मिलता है और बाकी समय वे दूसरे काम करते हैं. हर तालाब में खेती के लिए
15-20 लोगों की जरुरत पड़ती है. बड़े तालाब में यह संख्या 25-30 तक पंहुच जाती है.
इन जगहों पर भी हो सकती है पानीफल
की खेती
TV9 भारतवर्ष की एक एक रिपोर्ट में वाटर चेस्टनट (ट्रैपा नटान) ने बताया,
सिंघाड़ा यानी पानीफल भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख जलीय फल फसलों
में से एक है. कहा जाता है कि यह एक जलीय अखरोट की फसल है जो मुख्य रूप से
उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पानी में उगाई जाती है. यह झीलों,
तालाबों और जहा 2-3 फीट पानी लगा हो, आसानी से
उगा सकते है, इसके लिए पोषक तत्वों से भरपूर पानी, जिसमें तटस्थ से थोड़ा क्षारीय पीएच होता है. सफलतापूर्वक इसकी खेती कर
सकते है. दरअसल, इसका पौधा का जीवन पानी के किनारे पर अच्छी
तरह अनुकूलित होती है. साथ ही कीचड़ के किनारे फंसे होने पर भी फलता-फूलता है.
वहीं, बिहार में सिंघाड़ा एवं मखाना की खेती प्रमुखता से
होती है. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल, यूपी उडीसा, झारखंड सहित कई प्रदेशों में अच्छी खासी खेती होती है.
इस फल से जुड़ी मुख्य जानकारी
गौरतलब है कि डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व
विद्यालय पूसा समस्तीपुर के फल वैज्ञानिक डॉ० एस के सिंह बताते हैं कि अब तक कोई
भी मानक किस्म का सिंघाड़ा की प्रजाति
विकसित नहीं किया गया है. परंतु हरे, लाल या बैंगनी जैसे विभिन्न भूसी रंग वाले नट्स और लाल और हरे रंग के
मिश्रण को मान्यता दी जाती है. कानपुरी, जौनपुरी, देसी लार्ज, देसी स्मॉल आदि कुछ प्रकार के
सिंघाड़ा के नाम हैं जिन्हें पश्चिम बंगाल
और पूर्वी भारत के अन्य हिस्सों में उत्पादकों के लिए संदर्भित किया जाता है.
एक टिप्पणी भेजें
Thankyou!