देश भर में दुर्गा पूजा को लेकर तैयारियां जोरों से चल रही है. बाजारों में भीड़ को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस वर्ष श्रधालुओं में कितना उत्साह है. बता दें, नवरात्रि की शुरुआत बीते सोमवार से ही हो गई है. वहीं, आज पंचम स्कंदमाता की पूजा होती है. अगर स्कंदमाता की बात करें तो कार्तिकेय के माता होने के कारण इनका नाम पड़ा. इस स्वरुप में मां भगवती की चार भुजाएं हैं. माता का एक हाथ वरमुद्रा में है और कार्तिकेय इनकी गोद में विराजमान हैं. मां अपने भक्तों को अपने पुत्र के समान रक्षा करती है.
हालांकि, राजधानी रांची में भी दुर्गा पूजा का कल्चर बढ़ता जा रहा है. शहर के करीब 50 प्रतिशत अपार्टमेंट में मां दुर्गे को स्थापित कर पूजा जाता है. समिति के लोग तरह-तरह के पंडाल बनवाए हैं तो दुर्गा माता का मूर्ति स्थापित कर रहे हैं. बता दें, आज यानी शुक्रवार के दिन रांची के रातू रोड इलाके में स्थित काली मंदिर के द्वारा तैयार की गई भव्य पंडाल का उद्घाटन राज्यसभा सांसद ने की. यह पंडाल को बनाने के लिए बंगाल से कारीगरों को बुलाया गया था. मौके पर इस मंदिर के संस्थापक शशिकांत तिर्की समेत कई मौजूद रहे. उन्होंने बताया यह पंडाल को सफ़ेद उल्लू यानी मां लक्ष्मी की सवारी का रूप दिया गया है.
दरअसल, कोरोनाकाल के दो साल बाद इस वर्ष मेले का आयोजन के लिए सहमती मिली है. ऐसे में लोग काफी उत्साहित हैं और बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. मालूम हो कि हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव या शारदोत्सव के नाम से भी जाना जाता है. यह वार्षिक तौर पर मनाया जाने वाला एक उत्सव है, जिसमें भक्तजन देवी दुर्गा की आराधना करते हैं और महिषासुर पर उनकी जीत का जश्न मनाते हैं.
गौरतलब है कि स्वर्ग लोक में महिषासुर के अत्याचार से सभी देवता बेहद परेशान थे और किसी के लिए भी उन्हें हराना संभव नहीं हो पा रहा था. ऐसे में ब्रह्माजी के कहने पर सभी देवताओं ने अपने-अपने तेज से एक शक्ति प्रकट की और ये शक्ति ही मां दुर्गा थीं. मां दुर्गा की दस भुजाएं हैं और हर भुजा में अलग-अलग देवताओं के दिए गए शस्त्र हैं, जिनसे मां ने महिषासुर का वध किया. दुर्गा पूजा सदियों से भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहा है. इसे हिंदु धर्म के अलग-अलग संप्रदायों से जुड़े लोग अपने-अपने ढंग से मनाते हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र है कि इस दौरान मां दुर्गा कैलाश पर्वत में अपने ससुराल से धरती पर अपने मायके आती हैं. इस दौरान अपने भक्तजनों को वह आशीर्वाद देती हैं.
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