डीएसपीएमयू, रांची: विश्वप्रसिद्ध जलपुरुष और
मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ. राजेंद्र सिंह ने झारखंड को प्रकृति का लाड़ला पुत्र
बताते हुए दर्शाया कि भूजल के दोहन से स्थिति चिंताजनक हो रही है और दिनों-दिन
भूमिगत जल में कमी हो रही है. विज्ञान के साथ-साथ विवेक का भी उपयोग करना आवश्यक
है. ताकि भारत में भी जलवायु परिवर्तन के कारण संतापित शरणार्थियों की समस्या
उत्पन्न न हो. उन्होंने कहा कि हमें सनातन मॉडल को अपनाना होगा, जो सदैव निर्माण और सृजन में वृद्धि करेगा. बता दें कि, डॉ. राजेंद्र सिंह
डीएसपीएमयू के वाणिज्य, ईएलएल, और
इतिहास विभाग एवं आईक्यूएसी के संयुक्त तत्वाधान में एकदिवसीय सेमिनार और
व्याख्यान के आयोजन में ये बातें कही.
जलवायु परिवर्तन से नदियों की सबसे बड़ी समस्या
सेमिनार में डॉ. राजेंद्र सिंह ने जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमानित
परिणामों पर ध्यान दिया. उन्होंने अतिक्रमण, प्रदूषण, और शोषण को नदियों की सबसे बड़ी समस्या
बताया. उन्होंने कहा कि, झारखंड के लिए
नदियों को जोड़ना ही समस्या का निदान हो सकता है. उन्होंने
चेतावनी दी कि यदि हम इस चिंताजनक स्थिति को समझने में असमर्थ रहे तो अगला युद्ध
जल पर ही लड़ा जाएगा. उन्होंने बारिश के पानी के संरक्षण की
आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि झारखंड में अधिकांश नदियां सूख रही हैं, जिसका ध्यान देना आवश्यक है.
डॉ. राजेंद्र सिंह की पुस्तकों का विमोचन
सेमिनार के पूर्व, कुलपति डॉ. तपन
कुमार शांडिल्य ने डॉ. राजेंद्र सिंह की दो पुस्तकों "सभ्यता की सूखती
सरिता" और "जलपुरुष की जलयात्रा" का विमोचन किया.
विश्वविद्यालय के प्रमुखों के संदर्भ में बोले गए
इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रमुख, कुलपति डॉ. तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में जल
की महत्ता को बार-बार नमन किया गया है. उन्होंने झारखंड के
लिए नदियों को जोड़ने की जरूरत को उजागर किया और बताया कि इससे सूखे और बाढ़ की
समस्या का निदान संभव हो सकता है. सेमिनार में
विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने भी अपने विचार प्रकट किए. इनमें शामिल थे, डॉ. एसएम अब्बास, डॉ. अभय कृष्ण
सिंह, डॉ. रजनी कुमारी, डॉ. शमा सोनाली,
प्रियांशु कुमार, धर्मेंद्र कुमार, शुभ्रा लकड़ा, हनी कुमारी व अन्य. इस संदर्भ
में यह जानकारी विश्वविद्यालय के पीआरओ डॉ. राजेश कुमार सिंह ने दी है.
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