झारखंड की सियासत में लगातार सरगर्मी रहती है. इसका खामियाजा हमेशा यहां की जनता को भुगतना पड़ जाता है. दरअसल, इस वजह से विकास के कार्यों पर न ही ध्यान दिया जाता है न ही खराब स्थिति को सुधारने का प्रयास किया जाता है. इसका खामियाजा यहां की जनता को भुगतना पड़ जाता है. पहले की ही तरह इस बार भी राज्य के गुमला जिले के रहने वाले 15 वर्षीय अमित कुमार इसका भेंट चढ़ गये. अब ये सवाल उठाता है कि आखिर इसका भेंट कब तक कोई मासूम चढ़ता रहेगा? इसके पहले आइए जानते हैं इस खबर को विस्तार से-
दरअसल, इस मासूम को सामान्य बुखार थी,
जिसका इलाज सिसई के एक निजी डॉक्टर से कराया गया. जिसमें बताया गया
कि बच्चा मलेरिया से ग्रसित है. वहीं, इलाज के बाद उसे दवाई
देकर घर भेज दिया गया. अब होना क्या था! कुछ ही दिनों बाद बच्चे की स्थिति फिर से
अनियंत्रित हो गई. उसे पुनः डॉक्टर के पास ले गये तो पता चला कि बच्चे के शरीर में
आवश्यकता से बेहद कम खून है. इतना सुनते
ही बच्चे के परिजन आंव देखा न तांव, देर किए बिना ही गुमला
के सदर अस्पताल में भर्ती करा दी. हालांकि, इस अस्पताल में
खून को चढ़ाया गया. बता दें, दो दिन बीतने के बाद बच्चे को
अस्पताल से छुट्टी मिल गई.
परंतु, घर जाने के उस मासूम बच्चे की
स्थिति सामान्य तो नहीं हुई बल्कि और भी बिगड़ गई. आनन-फानन में उसके माता-पिता
सिसई के एक निजी अस्पताल में दिखाई. वहां उन्हें रांची ले जाने की सलाह मिली.
जिसके के बाद राजधानी रांची के सेवा सदन अस्पताल में भर्ती कराया गया. इस अस्पताल
से एक ऐसी रिपोर्ट आई जिसे जानकर आपका भी दिल दहल जाएगा. दरअसल, रिपोर्ट में उस मासूम को ब्लड कैंसर होने की बात दर्ज थी जिससे उनके परिजन
भी अब तक वाकिफ नहीं थे.
सोच की गहराई
में ला देने वाली बात तो यह थी कि बच्चे को रांची भी ले आए और रिपोर्ट भी आ गई थी.
लेकिन एक गरीब के पास अच्छे अस्पताल में अपने बच्चे का इलाज के लिए भारी-भरकम पैसे
भी तो होने चाहिए. उस मासूम के परिजन विवश होकर राजधानी में ही स्थित राजेंद्र
इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यानि RIMS
अस्पताल में भर्ती कराया.
यह राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल होने की वजह से झारखंड का गौरव भी है. वहीं,
मरीजों को बेहतर सुविधा मिले इस मकसद से इसका निर्माण भी किया गया
था. भर्ती होने के ठीक दूसरे दिन ही सुबह
में डॉक्टर ने बच्चे का इलाज करने के दौरान अमित के परिजन को ये कहकर निकाल दिया
कि “इसका कोई भी इलाज इस अस्पताल में नहीं है इसे तुरंत यहां से बाहर ले जाइए” अब
क्या लगता है आपको ऐसे प्रतिष्ठित अस्पताल में काम कर रहे डॉक्टर को ऐसा बुरा
व्यवहार करना शोभा देता है?
अब अमित कुमार
के इलाज के लिए सभी दरवाजे बंद हो गए थे. फिर भी उनके माता-पिता ने हिम्मत नहीं
हारी. किसी से मदद लेकर उन्होंने बच्चे का इलाज के लिए फिर से निजी अस्पताल में डॉ
कुमार सौरभ का दरवाजा खटखटाया. वहां,
उस बच्चे का टेस्ट केवल 20-25 हजार रुपये का कराया गया. उसमें भी
बच्चे के परिजन ने अपनी सहमती दी. लेकिन टेस्ट के बारे में बिन बताए बच्चे को
तुरंत भर्ती करने को कह दिया गया. हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि बच्चे को
भर्ती करने से इनकार करने के बाद वहां अपमानित किया गया सिर्फ इसलिए कि वे लोग
आर्थिक रूप से काफी कमजोर थे. राज्य के इस खराब सिस्टम से हारकर बच्चे के
माता-पिता उसे घर ले गये. कुछ ही दिनों के बाद फिर से हालत काफी खराब हो गई.
फिलहाल, अमित मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल एडमिट है.
वहां के डॉक्टरों ने कहा आप लोग जहां से इसे इलाज करा रहे थे वहीं लेकर जाइए बच्चे
को ब्लड कैंसर नहीं है. ऐसी कुव्यवस्था से बच्चा जिंदगी और मौत से लड़ रहा है इससे
परिजन काफी परेशान हैं.
गौरतलब है कि उस
मासूम के परिजनों ने बताया स्थानीय विधायक जिगा मुंडा से मुखिया के द्वारा जानकारी
दी गई. फिर भी उनकी ओर से भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. साथ ही उन्होंने यह कहकर
मामले को नकार दिया कि आप जाति और आवासीय प्रमाण पत्र बनवाइए जिसके बाद मैं थोड़ी
बहुत कर सकता हूं. जबकि स्थानीय विधायक मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री से इस
संबंध में बात कर सकते थे. लेकिन उन्होंने इस संबंध में किसी से कोई बात नहीं किया
जबकि यह केस बहुत बड़ा है और हमारी स्थिति भी काफी दयनीय है.
(रिपोर्ट: आकाश नाथकर)
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