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Giridih News: सेनादोनी में गुरु पूजन का आयोजन, जानिए.. गुरु का सम्मान व इसकी उपासना महत्व

Senadoni, Giridih: गिरिडीह जिले के सेनादोनी गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मंगलवार के दिन गुरु पूजन का आयोजन किया। प्रांत शारीरिक शिक्षण प्रमुख कुणाल जी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि 'गुरु पूर्णिमा' शब्द में पूर्णिमा का अर्थ होता है पूर्ण चांद यानि 16 कलाओं से विभूषित चांद। हिंदू समाज में पूर्णिमा बहुत पवित्र मानी जाती है और प्रति माह में यह अवसर 12 बार आता है। इस आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है क्योंकि, इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म दिन होता है। गुरु पूजा का यह पर्व गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।

इस वजह से है गुरु का अत्यंत महत्व
भारतीय समाज में गुरु को अत्यंत महत्व दिया जाता है। गुरु का अर्थ होता है जो अज्ञानांधकार को दूर करके प्रकाश को स्थापित करता है। गुरु की आदर, भक्ति और श्रद्धा की प्रथा भारतीय समाज में बहुत पुरानी है। भारतीय संस्कृति में माता, पिता के साथ ही गुरु को भी देवता माना जाता है। गुरु के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा के भाव की परंपरा अनगिनत काल से चली आ रही है। गुरु के प्रमुख उदाहरण राम, कृष्ण, वशिष्ठ, संदीपनी, बृहस्पति, शुक्राचार्य आदि हैं।

भगवाध्वज कर रहा गुरु का काम
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवा ध्वज को गुरु माना है। यह भगवा ध्वज राष्ट्र का मौलिक प्रतीक है और उसका ध्येय राष्ट्र के प्रति समर्पण है। इस ध्वज का अर्थिक महत्व है और समाज के हित के लिए उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। गुरु भगवाध्वज के सामर्थ्य के सामक्षिक होता है और उससे ज्ञान की प्राप्ति होती है। भगवाध्वज के आलोक में हमें भारत का इतिहास, भूगोल और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। इसके साथ ही, यह ध्वज हमें राष्ट्रीय भावना का विकास करने में मदद करता है। इसलिए, गुरु भगवाध्वज को हम सभी गुरु पूजा के रूप में मानते हैं।

समर्पण का प्रतीक है गुरु दक्षिणा

संघ ने अपने कार्यक्रमों में एक नया दृष्टिकोण देकर समाज में प्रचलित परंपरा को बदल दिया है। व्यक्तिगत उपयोग की जगह पर राष्ट्र कार्य के लिए आवश्यक धन को दक्षिणा के रूप में समर्पित करने की परंपरा को प्राथमिकता दी है। संघ के सदस्य गुरु भगवाध्वज के सामने जाकर धन का समर्पण पूर्ण मनोयोग से करते हैं। इस परंपरा में दान या चंदा की भावना नहीं होती, बल्कि स्वार्थ और अहंकार से मुक्त होकर धन का समर्पण किया जाता है। सदस्यता के लिए भी कोई शुल्क नहीं है, शाखा में शामिल होना पर्याप्त है।

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