डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती: कुलपति शांडिल्य बोले, भारतीयता की रक्षा ही उनके जीवन का सिद्धांत था

सार
डीएसपीएमयू में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की
122वीं जयंती पर एक सेमिनार आयोजित किया गया. इस समारोह में कुलपति व अन्य ने डॉ. मुखर्जी के योगदान का बखूबी स्मरण किया और छात्रों को उनके मार्गदर्शन की सलाह दी. इसके साथ ही डॉ. शांडिल्य ने भी उनके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की. जहां उन्होंने उनकी विदेशी मान्यता और उनकी राष्ट्रवादी भावना को बताया.

जयंती विशेष: डीएसपीएमयू में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 122वीं जयंती के अवसर पर गुरूवार को एक समारोह सह सेमिनार का आयोजन किया गया. यह आयोजन विश्वविद्यालय के आईक्यूएसी (इंटरनल क्वालिटी एश्योरेंस सेल) और ईएलएल विभाग (इंग्लिश लैंग्वेज लर्नर) के संयुक्त सौजन्य से किया गया है. कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. तपन कुमार शांडिल्य, कुलसचिव डॉ. नमिता सिंह और झारखंड ओपन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. टीएन साहू ने दीप प्रज्वलित कर किया. इसके बाद माल्यार्पण के लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर पर फूलों का अर्पण किया गया.

अभिव्यक्ति के लिए डीएसपीएमयू का नामकरण

कार्यक्रम की शुरुआत कुलसचिव डॉ. नमिता सिंह ने विषय प्रवेश और स्वागत भाषण के साथ की. इसके बाद कुलपति डॉ. तपन कुमार शांडिल्य ने अपना भाषण दिया, जिसमें वे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को स्मरण करते हुए उनके योगदान को प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बताया है. उन्होंने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की परिकल्पना का राष्ट्र बनना आज भी अधूरा है और उनके योगदान को अभिव्यक्ति देने के लिए उनके नाम से विश्वविद्यालय का नामकरण किया गया है. इससे विश्वविद्यालय गर्व महसूस करता है. साथ ही विद्यार्थियों को संदेश दिया कि, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के व्यक्तित्व को समझने के लिए वे 'डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं कश्मीर की समस्या' नामक पुस्तक का अध्ययन करें.

महान राष्ट्रनिर्माता की प्रेरणादायक कहानी
डॉ. शांडिल्य ने बताया कि उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बनने के बाद अपने गणित के अध्ययन के लिए विदेश जाने का निर्णय लिया था और उन्हें लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी द्वारा सम्मानित सदस्य बनाया गया था. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को पहली बार बंगाली भाषा में संबोधित किया था. वे धर्म के आधार पर विभाजन के प्रति कट्टर विरोधी थे और उन्हें लगता था कि भारत को एकजुट रहने और सशक्त होने की जरूरत है.

प्रेरणा स्रोत और नैतिक मार्गदर्शक हैं डॉ. मुखर्जी
विशिष्ट अतिथि के रूप में झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. टी एन साहू ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के व्यक्तित्व से सीखने की सलाह दी. वे बताए कि डॉ. मुखर्जी ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी लड़ाई आज भी हमारे लिए प्रेरणास्रोत है. उन्होंने छात्रों से कहा कि वे उनके योगदान से अधिक से अधिक सीखें और उनके मार्गदर्शन में सामरिक और नैतिक मूल्यों का पालन करें.

समीक्षा
यह समारोह डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती को समर्पित है और इसमें उनके योगदान की महत्वपूर्णता को उजागर किया गया है. इस संदर्भ में उद्बोधन करते हुए आयोजक ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचारों की महत्वता पर जोर दिया है और छात्रों को उनकी जीवनी और संघर्षों के बारे में जागरूक किया है.

रिपोर्ट: प्रिया गुप्ता

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